Wednesday 8 February 2017

ये भी कोई जीना है


ये जीना क्या जीना है ये भी कोई जीना है
हर पल सांसे गिनना है हर सांस में आंसू पीना है
ये भी कोई जीना है।

खोये खवाबों में है लेकिन क्या खवाबों का हमको करना
डूब न जाये डर है तो फिर क्यों मझधार में है पड़ना
तैर रही पर डूब गयी कितनी मासूम सफीना है
ये भी कोई जीना है।

चंदा और तारे तोड़ तो दे लेकिन क्या उनका करना
किसकी मांग सजायेंगे और होगा वो किसका गहना
ज़ख्म भरे जो इस दिल के ऐसा कौन नगीना है
ये भी कोई जीना है।

डूब चुके हैं हम जिनमे वे आँखे गहरे सागर है
बिरानी बस्ती हो या शोर भरा बहरापन है
तोड़ दे बस झटके में दिल ऐसा कौन करीना है
ये भी कोई जीना है।

रूठ न जाएँ हम खुद से ये शायद सोचा होगा
बस थोड़ी तकलीफे थी जब ये हाथ कटा होगा
तिल तिल मरते रहते हैं जैसे ये खून पसीना है
ये भी कोई जीना है।

सपने तो आज बहुत से हैं लेकिन कोई वजह नहीं
बीती उम्र बहुत ढूंढी पर जहाँ छुपी उस जगह नहीं
इस जीवन के सपनो को अगला जीवन क्यों जीना है
ये भी कोई जीना है।
                                                  ये भी कोई जीना है।

Monday 28 November 2016

न जाने कहाँ को चले जा रहे हैं ।

न जाने कहाँ को चले जा रहे हैं ।

भरी है दुपहरी बहे जा रहे हैं
न जाने कहाँ को चले जा रहे हैं ।
चले जा रहे हैं ।

खड़े पीठ करके भले उस तरफ हों
मगर मंजिलों को तके जा रहे हैं।
चले जा रहे हैं ।

Monday 10 October 2016

ऐ दोस्त…तुम ऐसे तो न थे

ऐ दोस्त…तुम ऐसे तो न थे



जब से तुमको जाना है, तुम ऐसे न थे ।
यूँ कैसे बिखर गए, तुम ऐसे न थे ।
देखा गम से हमेशा दूर, तुम ऐसे न थे ।
चेहरे पर भोलापन आँखों में चंचलता
न जाने कहाँ खो दी, तुम ऐसे न थे ।
तुमने ही थी सिखाया ज़िन्दगी को जीना
यूँ कैसे बेरंग बना बैठे, तुम ऐसे न थे ।

Tuesday 20 September 2016

प्यार

प्यार



जाने कितने संसार बिखर गए माता तेरे प्यार में
जाने कितने लाल गुजर गए माता तेरे प्यार में
गुज़र गए और बिखर गए जो फूल चुने थे प्यार से
आँचल के तेरे रंग रंगा गए माता तेरे प्यार में ॥

Wednesday 24 August 2016

चलन ज़िन्दगी का

पहिया बताता है
चलन ज़िन्दगी का
गड्ढों भरी
कंकड़ी, पथरीली, साधारण और शानदार
ऊंची नीची मखमली घाटियाँ
फूलों से भरी
सीखता है तमन्नाओं पर काबू करना
न बहकना न थिरकना न ही धधकना
चड़ता है कोमल राहों पर
और टूटे लम्हों पर भी
सिखाता है
खुशियों भरी राहें जल्दी कटती हैं
दुःख की धीरे
दूरी उतनी है
समझाता है कि
आवश्यक है
विश्वास, परिश्रम, निरंतरता
इस समझ के साथ कि
हम वही आ जाते है
एक चक्कर के बाद
अगले चक्कर के लिए...

Wednesday 20 July 2016

कारण

दर्द नहीं है कोई मौका किसी को युहीं जो मिल जाये
फूल नदी या हवा का झोंका बस युहीं जो चल जाये
फूलों के बिस्तर वाले इसकी कीमत क्या जानेंगे
दर्द उसी को मिलता है जो मरते मरते भी जी जाये ।
दर्द नहीं है लक्ष्य किसी का पाकर जो वो इतराए
नहीं है उत्कंठा कोई जो चखकर देखी ही जाये
कहने वाले कहते हैं की दर्द का कारण ये वो है
नहीं है ये दौलत कोई किसी को यूँ ही दी जाये।
दर्द नहीं है जिज्ञासा कि जिसको छूकर देखा जाये
नहीं दर्द कि परिभाषा कि जिससे समझ में आ जाये
ये तो उपपरिणाम है किसी लक्ष्य के पीछे का
जीतनी ज्यादा हो लगी लगी ये उतना ही बढ़ता जाये।
जीतनी गहराई से सोचा कि इस मंज़िल को पा जाये
दुनिया सारी छूटे मुझसे पर ये आँचल में आ जाये
रास्ता छूटे या देर लगे ये पीड़ा का उद्गगम भर है
जितना विशेष हो कारण वो उतना ही हमको है तडपाये।
अपनी चाहत को लेकर के संदेह कभी जो आ जाये
तो लेना दिल में झांक जरा सा दर्द कहीं जो मिल जाये
बस यही निशानी है उसकी कि सच्चा था विश्वास तुम्हे
जीवन पुष्पित फिर हो जाये जो तार दिलों में हिल जाये।
दर्द नहीं कोई धोखा जो तुमको कोई भी दे जाये
कितना था तुमने प्रेम किया उसका परिमाण बता जाये
जब कम था तब ये थोड़ा था जब ज्यादा था तो बहुत मिला
अपने जीवन कि सत्यकथा ये दर्द हमें ही बतलाये ॥
दर्द नहीं है कोई मौका किसी को युहीं जो मिल जाये॥॥॥
सम्पूर्ण कविता पथ के लिए कृपया निम्नांकित लिंक पर जाएँ



कारण




Thursday 7 July 2016

सुनो तो

सुनो तो



काली घनेरी बूँद से पूछो क्यों रो दिए
इंसान हर तरफ मिला इंसान खो दिए ।

मंदिर हो या मस्जिद कहीं कलीसा सभी जगह
वो तू ही था हर उस जगह, जिसको नज़र किये ।

ऐसा लगे क्यों तुझमे नहीं है कोई रहम
या फिर गुनाह कर दिए अल्लाह जो कहे ।

मजहब नहीं सीखता है गर आपस में रखना बैर
फिर क्यों उसी के नाम पर इतने कतल किये ।

क्या माँ के नाम से बड़ा दुनिया में है मजहब
वो कौन सी आयत थी जो माँ ही ले गए ।
(http://navbharattimes.indiatimes.com/world/asian-countries/twin-allegedly-killed-mother-after-being-stopped-from-joining-isis/articleshow/53080931.cms)

तुझको जरा भी है लगी इस कायनात से 
इंसानियत तू ही पढ़ा या कर फ़ना उन्हें ।

है इल्तिज़ा नहीं मेरी हर दिल की है दुआ
तेरी राज़ा का आसरा है आज भी हमें ।

दरिया ख़ुलूस की बहा नहीं तो सुनेगा फिर
इंसान हर तरफ मिला इंसान खो दिए ।
====== ६ जुलाई २०१६ को लिखित