Wednesday 29 June 2016

“तो क्या हो ……………”


“तो क्या हो ……………”


तेरे पहलू में सर छुपा ले तो क्या हो
इस जहाँ को शमशान बना दे तो क्या हो
जी नहीं सकते इक पल भी तुम बिन
तुझे इस जहाँ से चुरा ले तो क्या हो
दामन-ए-वक़्त में है तेरा मिलना
वक़्त पे बांध बना दे तो क्या हो
कहने को कहते हैं “खुदी को कर बुलंद इतना ……”
खुद ख़ुदा को जमीं पे ला दे तो क्या हो
मोहब्बत और जंग में सब जायज़ हे शायद
जंग को मोहब्बत बना दे तो क्या हो
लड़ने को तो ज़िन्दगी हे सारी
अब के ये दो पल मोहब्बत से बिता दे तो क्या हो
तेरे पहलू में ……………….

Wednesday 22 June 2016

भीख या माध्यम

ज़िन्दगी मांगती है भीख
हर रोज़
खुशियों अरमानो सम्बन्धों
पैसो की भी
पर सच में पैसो की किसी को जरूरत है क्या
…..शायद नहीं
ये तो बस माध्यम है बाकी सब पाने का
जीत जाने का हार जाने का
किसी को पाने का
खुद के टूट जाने का
फरेब और प्यार
विश्वास और घात
इसके कारण नहीं होते
ये तो बस माध्यम ही है.............
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Wednesday 15 June 2016

काश…

मुहब्बत में जलाकर आज भी रखे दिये हमने
कभी तू लौटकर देखे अँधेरा न मिले घर में॥
ख़ुशी मिलती है, तेरी शोहबतें हासिल नहीं मगर
तेरी यादों के हाथो सौंप दी ये ज़िन्दगी हमने ॥
छुपा के रखे है हमने सभी जज़्बात इस दिल के
की खातिर इस ज़माने के तुम्हे झूठा कहा हमने ॥
मेरे अल्फाज़ कमतर है तुम्हारे इश्क़ की खातिर
ज़ुबान को रोककर सबकुछ बताया रूह से हमने ॥
हमारी चाहतें बेड़ी नहीं है पैर की तेरे
तुम्ही से हारकर खुदको तुम्हे जीता है फिर हमने ॥
सुना है आप कहते हो लिखा क्या खूब नगमा है
हरफ को देने से पहले सहा है दर्द सब हमने ॥
वजह सोचा किये क्यों आपने छोड़ा हमें तन्हा
बसा रखा है जब तुमको नसीबो में मेरे रब ने ॥
मुहब्बत में जलाकर आज भी रखे दिये हमने
कभी तू लौटकर देखे अँधेरा न मिले घर में॥
——
१७ मई २०१६ को लिखित

कुछ बात करें…

आओ कुछ बात करें
सुने सुनाएँ
अपने तुम्हारे दिलों की
चीखे चिल्लाएं
महसूस करें
साँसों की जुंबिश
हाथों की थिरकन
होठों की लरज़ और
माथे की शिकन
गएँ उन गीतों को जो
हमारे थे
कोसें उन लम्हों को जो
हमारे नहीं थे
आखिर सालों में मिले है हम
तो आओ कुछ बात करें ।

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तन्हा राहें और तुम

उन्ही राहों पर हम तन्हा चले हैं
कदम के निशाँ तेरे मेरे पड़े हैं ॥
वही रंग हैं और वही रूप भी है
मगर पेड़ नज़रें झुकाए खड़े है ॥
बुलाया हमें उस गहरी नदी ने
जिसके किनारे सूने बड़े है ॥
मुझे देखकर फिर रोने को आई
वो कश्ती के चप्पू टूटे पड़े है ॥
तेरे साथ की फिर महक ढूंढता है
चमन में वीराने बिखरे पड़े है ॥
तुम्हे पूछता था पीछे का पर्वत
जहाँ दिल हमारे बिखरे पड़े है ॥
अभी थोड़े लम्हे जो गुज़रे यहाँ से
हमें तन्हा पाकर सिसकने लगे हैं ॥
मेरी रूह भी अब यही पूछती है
मैं ज़िंदा हूँ क्यों जब तुमसे परे है ॥
कभी बैठो फुरसत से तभी सोचना ये
फ़िक्र क्यों तुम्हारी करने लगे है ॥
उन्ही राहों पर हम तन्हा चले हैं
कदम के निशाँ तेरे मेरे पड़े हैं ॥

====
२० मई २०१६ को लिखित

तेरे नैन मेरे बैन …

तेरे नयनो की धवल शांति में
डूबता तैरता मेरा मन
कभी तिनके का सहारा
कभी स्वयं जलधारा
नयनो के सहारे हृदय की दहलीज़ पर
दस्तक देता मेरा मन


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प्यार: जवाब या सवाल…


अच्छा हुआ जो कोई जवाब ना दिया
रुसवा जो हो मुहब्बत वो लम्हात ना दिया ।
कोई तो दाग लगता दमन में प्यार के
इस डर से उस सवाल से मुंह ही चुरा लिया ।
कोई तो हूक होगी मेरे हुक़ूक़ की
दिल की जुबाँ पे आपने मेरा नाम जो लिखा ।
रोया था मैँ भी साथ में तेरे बजूद के
आंसू की हर चुभन को हंसकर दबाया दिया ।
मन की हर इक दरार बुलाती है हर दफा
मजबूरियों के डर से जिसको छुपा लिया ।
तेरी वफ़ा पे हर जगह हमको यकीन है
बस तू कभी न सोचना हमने भुला दिया ।
देंगे तुम्हारा साथ तो हम हर जनम जनम
साथी हो तुम ख़ुदा ने ही हमको मिलाया था ।
कोई जवाब हो न हो लफ्ज़ो की छाव में
साँसो की लरज़ में दीदार-ए-यार हो गया ।
शिकवा करें तो क्यों महबूब से मेरे
रुसवाइयाँ कहाँ से हो जब प्यार हो गया ।
अच्छ हुआ जो कोई…

तमन्ना…

जिसके लिए जलाए थे सितारे चराग से
पूनम की उस चमक को बादल चुरा लिए ।
झूठे से दो पलों की शिकायत करें तो क्यों
न तुम कभी खफा थे न हम बेवफा हुए ।
शर्मों हया की सुर्खियां खामोशियाँ बनी
ज़ाहिर न इशारा किये नुमायां नहीं किये ।
लूटे थे खुद ही आपकी खुशियां तमाम जो


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पुष्प, दीप्ति – एक नया संसार



सोचा था क्या बनेंगे हम
बने दीप्ति या बने सुमन
दीप्ति बने तो जलन साथ में
सुमन बने तो मिले चुभन
सोचा था क्या बनेंगे हम
दीपक बनकर आग लगा दे
इस दुनिया को खाक बना दे
जी भर साथ में शूल मिलेंगे
तो क्यों ऐसा बने चमन
सोचा था क्या बनेंगे हम



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केवल शब्द

शब्दों को कविता बनते हमने देखा
अक्षर में खुद को गिरते हमने देखा
बनने को सौ यार यहाँ बन जाते हैं
अपनों को बेगाना बनते हमने देखा

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घोड़ा… कुछ यादें बचपन की

था  मैंने  इक  सपना  देखा
सपने  में  था  घोड़ा
मटक – मटक  के  चला  कभी  वो
कभी  था  सरपट  दौड़ा …..
आँखे  उसकी  कजरारी  थी
चल  बड़ी  थी  प्यारी
परी  लोक  का  लगता  था वो
देखे  दुनिया  सारी …..

Tuesday 14 June 2016

तेरे नैन मेरे बैन …


तेरे नयनो की धवल शांति में
डूबता तैरता मेरा मन
कभी तिनके का सहारा
कभी स्वयं जलधारा
नयनो के सहारे हृदय की दहलीज़ पर
दस्तक देता मेरा मन
जाने कब से तेरी भावना के सागर में उफान के इंतज़ार में
खड़ा हुआ............


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मृगमरीचिका

मृगमरीचिका

रेगिस्तान की सांद्र उमस में
भटके पथिक सा मन
कभी यहाँ कभी वहां
लक्ष्य के पीछे भागता
हर क्षण प्रतिक्षण
सामने, बस एक कदम दूर
तत्क्षण ही अदृश्य
समय की गति सा
आगम और निगम …..
रेगिस्तान की झुलसती बारिश में
भीगता तड़पता मेरा मन
हर क्षण आतुर
जल के लिए
सामने है नज़र
सम्मुख आए तो मिली
मृगतृष्णा,
व्याकुल, विह्वल और कोमल
दौड़ता भागता मेरा मन …..
रेगिस्तान की तड़पती आंधियों में
मोर पपीहे सा चीखता मन
तड़प बस एक बूँद की
चाह झलक की
पुकार एक चाह की
शोले की दहक में
शबनम की चाह
जीवन की राह में
मृत्यु का आलिंगन
रेगिस्तान की सांद्र उमस में
दौडता भागता मेरा मन…..
मेरा मन